नेशनल डेस्क
गुजरात, जो एशियाटिक शेरों का एकमात्र निवास स्थल है, पिछले दो वर्षों में 300 से अधिक शेरों की मौत के कारण चर्चा में रहा है।
राज्य के वन मंत्री मुलुभाई बेरा ने विधानसभा में बताया कि इस अवधि में कम से कम 307 शेरों की मृत्यु हुई, जिनमें से 41 की मौत अप्राकृतिक कारणों जैसे सड़क दुर्घटनाएं, रेल हादसे, और मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण हुई। यह जानकारी बुधवार को प्रश्नकाल के दौरान आम आदमी पार्टी के विधायक उमेश मकवाना के सवाल के जवाब में सामने आई।
Gujrat शेरों का इंसान से खतरा
गिर अभयारण्य और इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले इन शेरों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं। वन मंत्री ने बताया कि शेरों की अप्राकृतिक मौतों को रोकने के लिए पिछले दो वर्षों में 37.35 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
इन उपायों में बाड़बंदी, गश्ती दल तैनात करना, जागरूकता अभियान, और शेरों के लिए सुरक्षित गलियारों का निर्माण शामिल है। इसके अलावा, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए स्थानीय समुदायों को शिक्षित करने और वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने की दिशा में भी प्रयास किए गए हैं।
Gujrat शेरों की मृत्यु चिंता का विषय
हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद शेरों की मृत्यु दर चिंता का विषय बनी हुई है। प्राकृतिक कारणों जैसे बीमारी और उम्र के अलावा, अप्राकृतिक कारणों से होने वाली मौतें विशेष रूप से गंभीर हैं। सड़कों और रेलवे ट्रैकों के विस्तार ने शेरों के प्राकृतिक आवास को खतरे में डाला है। इसके साथ ही, बढ़ती मानव आबादी और अतिक्रमण ने उनके लिए सुरक्षित स्थान को सीमित कर दिया है।
Gujrat विशेषज्ञों की रॉय
शेरों की सुरक्षा के लिए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि सरकार को और सख्त कदम उठाने चाहिए। इसमें रेलवे ट्रैकों और सड़कों पर बाड़ लगाने, शेरों की आवाजाही के लिए विशेष कॉरिडोर बनाने, और स्थानीय लोगों के साथ सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।
साथ ही, शेरों की आबादी को अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की योजना, जैसे मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में, पर भी विचार किया जाना चाहिए।
गुजरात के शेर न केवल राज्य की धरोहर हैं, बल्कि विश्व स्तर पर जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनकी सुरक्षा के लिए सरकार और समाज को मिलकर और ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में इनके संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सके।










