पूजा मेहरा संवाददाता
दिल्ली-एनसीआर स्थित बंगाली प्रवासी संस्था बोंगोतोरु ने इस वर्ष दुर्गा पूजा के 25 वर्ष पूरे होने पर रजत जयंती समारोह का आयोजन किया। यह आयोजन न केवल एक त्योहार, बल्कि दूर बसे बंगालियों के लिए घर की यादों, संस्कृति और सामूहिकता का प्रतीक बन गया है।
ढाक की थाप, पारंपरिक भोग, देवी प्रतिमा की भव्यता और पंडाल की सजावट इन सबने बोंगोतोरु को एक समुदाय से बढ़कर एक भावनात्मक घर बना दिया है।

दुर्गापूजा थीम “स्वप्नेर 25”
इस वर्ष का पंडाल थीम “स्वप्नेर 25” पर आधारित था, जो दिल्ली-एनसीआर में बसे बंगालियों के लिए एक ‘घर से दूर घर’ का सपना साकार करता है। इस थीम में पारंपरिक सांस्कृतिक गर्व को आज की आधुनिकता और उत्सव की भव्यता के साथ जोड़ा गया। हर सजावट, प्रतीक और रंग में परंपरा और नई पीढ़ी की सोच की झलक दिखी।
समारोह की एक खास झलक थी — गायक, संगीतकार और गीतकार अनिंद्य बोस द्वारा रचित विशेष थीम सॉन्ग, जिसे अभिनेत्री भाग्यश्री ने उद्घाटित किया। यह गीत कोलकाता और दिल्ली-एनसीआर में शूट किया गया था और यह प्रवासी बंगालियों की भावनात्मक यात्रा को दर्शाता है। उद्घाटन समारोह सेंट्रल पार्क, शिप्रा सिटी में आयोजित हुआ, जिसमें फिल्म, कला और सामाजिक क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया।
दुर्गापूजा संस्कृति और मनोरंजन का संगम
हर साल की तरह इस बार भी बोंगोतोरु के पंडाल में दिल्ली, मुंबई और बंगाल से आए कलाकारों ने नृत्य, नाट्य, दांडिया और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। परंपरा और आधुनिकता का ऐसा सुंदर मिश्रण पूरे समारोह में देखने को मिला।
दुर्गापूजा परंपरा और समुदाय से जुड़ाव
इस बार भी प्रमुख आकर्षण रहा नव दुर्गा की प्रतिमा, जिसे पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर के कारीगरों ने तैयार किया। बोंगोतोरु लगातार पाँच वर्षों से दिल्ली-एनसीआर में नव दुर्गा को प्रदर्शित करने वाला एकमात्र आयोजनकर्ता है, जो एक अनूठी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है।बोंगोतोरु के अध्यक्ष सुरजीत डे पुरकायस्थ ने कहा जैसे-जैसे हम बोंगोतोरु के 25 वर्ष पूरे कर रहे हैं, मैं गर्व और कृतज्ञता महसूस करता हूँ। यह आयोजन दिल्ली-एनसीआर में एक मजबूत सांस्कृतिक परिवार और बंगाली विरासत को जीवित रखने का प्रयास है।
दुर्गापूजा समाज सेवा में योगदान
इस वर्ष बोंगोतोरु का CSR प्रयास शिक्षा, स्वास्थ्य और सामुदायिक कल्याण पर केंद्रित रहा। संस्था का मानना है कि दुर्गा पूजा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि समाज से जुड़ने और खुशियाँ बाँटने का अवसर है।










