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कांग्रेस सांसद इमरान मसूद का विवादित बयान: दिल्ली ब्लास्ट के आत्मघाती हमलावर को ‘रास्ते से भटका युवक’ बताया

BPC News National Desk
3 Min Read
लाल किला

दिल्ली के लाल किले के पास 10 नवंबर को हुए विस्फोट में आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर मोहम्मद नबी के बचाव में सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने विवादित बयान दिया है। मसूद ने हमलावर को ‘रास्ते से भटका हुआ युवक’ करार देते हुए कहा कि इस तरह के कृत्यों के पीछे सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। उन्होंने केंद्र सरकार पर अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षण संस्थानों, विशेष रूप से अल-फलाह यूनिवर्सिटी को निशाना बनाने का आरोप लगाया है।

आत्मघाती हमलावर के वीडियो ने देश को झकझोरा, 13 से अधिक लोगों की मौत

दिल्ली पुलिस की जांच के अनुसार, डॉ. उमर मोहम्मद नबी ने एक कार में विस्फोटक भरकर लाल किले के निकट खुद को उड़ा लिया था, जिसमें 13 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई घायल हुए। हाल ही में सामने आए एक वीडियो में हमलावर ने अपने कृत्य को ‘शहादत का ऑपरेशन’ बताया था, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया। इस घटना ने सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर डाल दिया है और जांच में जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों की संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है।

उमर भटका युवक था, सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों को निशाना बना रही है

इमरान मसूद ने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा, “डॉ. उमर एक रास्ते से भटका हुआ युवक था। सरकार अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को निशाना बना रही है, खासकर अल-फलाह यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों पर दबाव डाला जा रहा है। यह युवाओं को गुमराह करने का काम कर रहा है।” मसूद का यह बयान राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस छेड़ रहा है। भाजपा ने इसे ‘आतंकवाद का बचाव’ बताते हुए कड़ी निंदा की है। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने मसूद को ‘आतंकवाद का स्पिन डॉक्टर’ कहा और कांग्रेस पर आतंकी कृत्यों को सॉफ्ट-पेडल करने का आरोप लगाया।

कांग्रेस पार्टी ने अभी तक मसूद के बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के बयान युवाओं को गुमराह करने वाले कट्टरपंथी विचारों को बढ़ावा दे सकते हैं। दिल्ली पुलिस ने जांच तेज कर दी है और हमलावर के नेटवर्क को उजागर करने के लिए विभिन्न राज्यों में छापेमारी शुरू कर दी है।

यह घटना दिल्ली-एनसीआर में सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है, जबकि राजनीतिक बयानबाजी ने विवाद को और भड़का दिया है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि अल्पसंख्यक संस्थानों पर कोई भेदभाव नहीं हो रहा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है।

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