इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 29 साल पुराने चर्चित मोदी नगर-गाजियाबाद बस बम विस्फोट कांड में ट्रायल कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा पाए मुख्य आरोपी मोहम्मद इलियास की दोषसिद्धि को पलटते हुए उसे बरी कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि पुलिस के सामने दर्ज किया गया इलियास का इकबालिया बयान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के तहत पूरी तरह अस्वीकार्य है और इसे हटा देने के बाद उसके खिलाफ कोई वैधानिक रूप से स्वीकार्य सबूत शेष नहीं रह जाता।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ एवं न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने इलियास की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। पीठ ने अपने ६० पन्ने के विस्तृत आदेश में लिखा, “हम भारी मन से अपीलार्थी को बरी करने को बाध्य हैं। यह मामला बेहद गंभीर था, जिसमें 18 निर्दोष लोगों की जान गई थी और समाज की अंतरात्मा झकझोर दी गई थी, लेकिन कानून के सामने भावनाएं नहीं, ठोस एवं वैधानिक सबूत मायने रखते हैं। अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है।”
27 अप्रैल 1996 की भयावह शाम
रुड़की डिपो की उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस (नंबर UP-07 P 0065) उस दिन दिल्ली से 53 यात्रियों को लेकर हरिद्वार की ओर जा रही थी। मोहन नगर में 14 और यात्री सवार हुए। शाम करीब 5 बजे जैसे ही बस मोदी नगर थाना क्षेत्र पार कर रही थी, अचानक चालक की सीट के नीचे बायीं ओर रखे शक्तिशाली बम में जोरदार विस्फोट हो गया।
विस्फोट इतना भयानक था कि बस का अगला हिस्सा पूरी तरह क्षत-विक्षत हो गया। 10 यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 8 अन्य ने अस्पताल पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ दिया। कुल 18 लोगों की मौत हुई और 48 गंभीर रूप से घायल हो गए। पोस्टमार्टम में शवों से आरडीएक्स के धातु के टुकड़े बरामद हुए। फोरेंसिक रिपोर्ट ने पुष्टि की कि कार्बन के साथ मिश्रित आरडीएक्स का बम रिमोट कंट्रोल से ट्रिगर किया गया था।
अभियोजन का पूरा केस इकबालिया बयान पर टिका था
अभियोजन पक्ष का दावा था कि यह आतंकी हमला पाकिस्तानी नागरिक और कश्मीरी आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार के जिला कमांडर अब्दुल मतीन उर्फ इकबाल ने मोहम्मद इलियास और तस्लीम के साथ मिलकर रचा था। पुलिस ने इलियास को गिरफ्तार कर उसके सामने कथित तौर पर इकबालिया बयान दर्ज किया था, जिसे ट्रायल कोर्ट ने आधार बनाकर 2005 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस अधिकारी के सामने दिया गया कोई भी इकबालिया बयान (धारा 25 साक्ष्य अधिनियम) अदालत में सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे सबूतों से हटा दिए जाने के बाद अभियोजन के पास इलियास की संलिप्तता साबित करने को कुछ नहीं बचा।
कोर्ट का अंतिम निर्णय
खंडपीठ ने आदेश दिया कि मोहम्मद इलियास को तत्काल प्रभाव से रिहा किया जाए, बशर्ते वह किसी अन्य मामले में सजा न भुगत रहा हो। कोर्ट ने हालांकि यह भी टिप्पणी की कि सबूतों के अभाव में बरी करना कानूनी मजबूरी है, न कि यह प्रमाण कि अपीलार्थी निर्दोष है।
इस फैसले से 1996 के उस आतंकी हमले के पीड़ित परिवारों में एक बार फिर निराशा की लहर दौड़ गई है, वहीं कानूनी विशेषज्ञ इसे “सबूतों की कमी के कारण मजबूरी में बरी करने का क्लासिक उदाहरण” बता रहे हैं।










