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कर्णप्रयाग पुलिस ने 4 दिन में सुलझाई ‘नो-आईडी बैग मिस्ट्री’, आभूषण और कपड़े सुरक्षित वापस

BPC News National Desk
3 Min Read

एक छोटी सी मानवीय भूल ने दो परिवारों को चार दिनों तक परेशान रखा, लेकिन उत्तराखंड पुलिस की ईमानदारी और लगन ने इसे खुशी की कहानी में बदल दिया। कर्णप्रयाग पुलिस ने बिना किसी औपचारिक शिकायत या एफआईआर के, दो यात्रियों के आपस में बदल गए बैगों को सुरक्षित उनके असली मालिकों तक पहुंचाकर मानवता की मिसाल पेश की।

बस यात्रा में बदल गए थे बैग

घटना 17 नवंबर 2025 की है। हरिद्वार से विवाह समारोह से लौटते समय डिडोली (नंदप्रयाग) निवासी रघुबीर राणा और पनाई (गौचर) निवासी श्रीमती वर्षा त्यागी एक ही बस में यात्रा कर रहे थे। उतरते समय जल्दबाजी में दोनों के बैग आपस में बदल गए। समस्या यह थी कि दोनों बैगों में कोई पहचान पत्र, नाम या संपर्क नंबर नहीं था।

एक बैग में चांदी के आभूषण और कपड़े थे, जबकि दूसरे में निजी सामान। घर पहुंचने पर जब गलती का पता चला तो दोनों यात्री चिंतित हो उठे।

पुलिस ने बिना औपचारिक शिकायत शुरू की जांच

दोनों यात्री थाना कर्णप्रयाग पहुंचे और अपनी परेशानी बताई। कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई, लेकिन मानवता के नाते पुलिस ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी। थानाध्यक्ष के निर्देश पर अ0उ0नि0 राजीव कुमार, हेड कांस्टेबल राम लाल और पीआरडी जवान सरिता की टीम को जिम्मेदारी दी गई।

चार दिन चला सर्च ऑपरेशन

टीम ने बस रूट की जानकारी जुटाई, चालक-परिचालकों से पूछताछ की, संभावित यात्रियों से संपर्क किया और स्थानीय स्तर पर गोपनीय खोजबीन की। आखिरकार चार दिनों की मेहनत के बाद दोनों यात्रियों की पहचान सुनिश्चित कर उनके बैग बरामद कर लिए गए।

सुरक्षित लौटाया गया कीमती सामान

21 नवंबर 2025 को थाना कर्णप्रयाग में दोनों को उनके असली बैग सौंपे गए। चांदी के आभूषण, कपड़े और सभी निजी सामान पूरी तरह सुरक्षित थे। बैग पाकर दोनों यात्री भावुक हो गए।

रघुबीर राणा ने कहा,
“मैंने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन पुलिस ने चमत्कार कर दिखाया।”

श्रीमती वर्षा त्यागी ने कहा,
“उत्तराखंड पुलिस सिर्फ कानून की नहीं, इंसानियत की भी प्रहरी है।”

पुलिस का बयान

थाना प्रभारी ने कहा कि पुलिस का कर्तव्य सिर्फ अपराध रोकना नहीं बल्कि जनता के साथ खड़ा होना भी है। यह प्रकरण इसी सोच का उदाहरण है।

उत्तराखंड पुलिस ने एक बार फिर साबित कर दिया —
जहां ईमानदारी और संवेदना हो, वहां विश्वास खुद-ब-खुद जन्म लेता है।

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