उत्तराखंड की वादियों में कभी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रतीक रहे भालू अब इंसानों के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। पौड़ी जिले में भालू हमलों की बढ़ती घटनाएं चिंता का सबब बन गई हैं। वन विभाग के आधिकारिक आंकड़े डराने वाले हैं—जनवरी 2025 से 20 नवंबर 2025 तक सिर्फ पौड़ी जिले में भालू के हमलों में एक व्यक्ति की जान जा चुकी है, 12 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और 53 मवेशियों को भालू अपना शिकार बना चुके हैं।
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, ये हमले मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में हो रहे हैं जहां लोग जंगल के किनारे खेती या चारा लेने जाते हैं। भालुओं का मानव बस्तियों की ओर आना अब आम बात हो गई है। रात के समय घरों के बाहर रखा अनाज, फल-सब्जियां और पशु भालुओं को आकर्षित कर रहे हैं। जंगल में प्राकृतिक भोजन (जंगली फल, शहद, कीड़े-मकोड़े) की कमी के कारण भालू भूखे-प्यासे गांवों की ओर रुख कर रहे हैं।
स्थानीय लोग दहशत में हैं। एक पीड़ित ग्रामीण ने बताया, “पहले भालू इंसानों से दूर रहते थे, लेकिन अब दिनदहाड़े भी हमला कर देते हैं। बच्चे स्कूल जाते समय डरते हैं, महिलाएं चारा लाने से कतराती हैं।” कई गांवों में लोग रात में पटाखे फोड़कर, टिन पीटकर भालुओं को भगाने को मजबूर हैं।
वन विभाग ने स्वीकार किया है कि भालुओं की संख्या में बढ़ोतरी और जंगल क्षेत्र में अतिक्रमण, अवैध कटान, जंगल की आग जैसी घटनाएं इस समस्या की मुख्य वजह हैं। विभाग द्वारा भालू-मानव संघर्ष को कम करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं।
जैसे:
- प्रभावित क्षेत्रों में जागरूकता अभियान
- सौर बाड़ लगाना
- भालू-प्रूफ कूड़ादान वितरित करना
- खतरनाक भालुओं को पकड़कर दूर के जंगलों में छोड़ना
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि ये उपाय अभी अपर्याप्त हैं। वे मुआवजे में तेजी, रात में गश्त और भालू पकड़ने वाली टीमों की संख्या बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में यह समस्या और भयावह हो सकती है। उत्तराखंड सरकार और वन विभाग से उम्मीद की जा रही है कि भालू-मानव संघर्ष को कम करने के लिए दीर्घकालिक नीति बनाई जाए ताकि देवभूमि की यह खूबसूरती और इसके जंगली जीव दोनों सुरक्षित रह सकें।
फिलहाल पौड़ी जिले के ग्रामीण इलाकों में भालू का खौफ बना हुआ है और लोग हर पल सतर्क हैं।









