6 जनवरी / जन्मदिन विशेष परमवीर चक्र विजेता नायब श्री सूबेदार बन्ना सिंह
(नेशनल डेस्क)
नायब सुबेदार बन्ना सिंह का जन्म 6 जनवरी 1949 को काद्याल,रणबीर सिंह पुरा, जम्मू और कश्मीर मे हुआ।
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सियाचेन विश्व की सबसे ऊँची, ठंडी एवं महंगी युद्धभूमि है। वहाँ का वातावरण इतना विषम है कि कुछ न भी किया जाए तो ऐसे लक्षण दिखते हैं जैसे मानव शरीर मरने लग रहा हो। परन्तु सियाचेन का सामरिक महत्व इतना अधिक है कि इस निर्मम शीत मरुस्थल में भारत-पाकिस्तान हमेशा से संघर्षरत रहे हैं। जिसके नियंत्रण में सियाचेन है उसके पास अजेय लाभ है।
1987 में पाकिस्तान ने सियाचेन में सबसे ऊँची चोटी पर कब्ज़ा कर लिया। उस चोटी पर चौकी बना कर भारतीय गतिविधि पर पैनी नज़र रख रहा था और भारत कुछ नहीं कर सकता था। समुद्र तल से 21,000 फ़ीट की ऊँचाई पर बनी और 1500 फ़ीट की एकदम खड़ी बर्फ की दीवार से घिरी हुई वह चौकी एक अभेद्य किले से कम नहीं थी।
वहीं पाकिस्तानी सेना उसी चौकी से भारत के सैनिकों पर सरलता से गोलीबारी कर रही थी। ऐसे ही एक दुस्साहस में भारत के एक रेकी दल के 9 सैनिक मारे गए और 3 घायल हुए। पर खड़ी दीवार पर चढ़ कर चौकी पर विजय प्राप्त करना असंभव था।
अजेय लाभ। सेना में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब असंभव को यथार्थ बनाना ही एकमात्र विकल्प होता है। और इस बार भी ऐसा ही दायित्व हमारे सैनिकों को सौंपा गया।
नायब सूबेदार बन्ना सिंह एक छोटी सी टुकड़ी ले कर उस चौकी तक पहुँचने का प्रयास करने लगे। जिस तरफ से वे चढ़ रहे थे वह 90 डिग्री की खड़ी बर्फीली चट्टान थी। साथ ही बर्फीला तूफान भी ज़ोरों पर था। पाकिस्तानी चौकी में सब आश्वस्त बैठे थे कि उस ओर से हमला असंभव था।
मगर बन्ना सिंह ने अपने साथियों के मनोबल को बढ़ाया और उस चढ़ाई के एक एक असंभव फ़ीट पर विजय प्राप्त करते गए। अंततः वे चढ़ाई पूरी कर चुके थे और चौकी सामने थी। अपनी थकान को भूलते हुए बना सिंह अपने साथियों के साथ अपने लक्ष्य पर टूट पड़े। सामने से हो रही गोलीबारी की चिंता न करते हुए ग्रेनेड से हमला कर दिया।
चौकी में बम फेंक कर दरवाज़ा बन्द कर दिया और बेयोनेट से ही कई पाकिस्तानी सैनिकों का काल बन गए। एक असंभव विजय प्राप्त हुई और उस चोटी पर भारत का ध्वज फहर गया। उनके इस अविश्वसनीय सफलता के सम्मान में उस चोटी का नाम ‘बन्ना टॉप’ रख दिया गया।
ऐसी विषम परिस्थितियों में अदम्य साहस के लिए उन्हें परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया।
ऐसी विषम परिस्थितियों में अदम्य साहस के लिए उन्हें परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया।











