BPC न्यूज़ ब्यूरो – केंद्रीय माल एवं सेवाकर आयुक्तालय ग़ाज़ियाबाद में प्रेमचंद एवं दिनकर स्मृति पर्व का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में आयुक्त श्री संजय लवानिया की अगुवाई में कथाकार मुंशी प्रेमचंद और कवि रामधारी सिंह दिनकर को श्रद्धांजलि दी गई।
ग़ौरतलब है कि विगत 31 जुलाई 2024 को हिन्दी साहित्य के महान कथाकार प्रेमचंद की 144 वीं जयंती थी और यह वर्ष मूर्धन्य हिन्दी कवि रामधारी सिंह दिनकर का 50वाँ पुण्यतिथि वर्ष है।

इस कार्यक्रम में दिल्ली के सुमुखा नाट्य समूह द्वारा प्रेमचंद की कहानी पूस की रात का नाटकीय मंचन भी किया गया और साथ ही रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी का पाठ भी हुआ।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आयुक्त श्री संजय लवानिया ने कहा कि, “सीजीएसटी ग़ाज़ियाबाद राजभाषा हिन्दी के विकास हेतु प्रतिबद्ध है। एक भाषाई समाज के तौर पर भाषा का उत्सव महज़ भाषा प्रयोग से ही नहीं बल्कि उस भाषा में साहित्यिक विरासत के उत्सव से भी मनाया जाता है।

प्रेमचंद और दिनकर उसी विरासत की दो कड़ियाँ हैं। प्रेमचंद ने गहन मानवीय दृष्टि और अपने सामाजिक बोध के दम पर भारतीय जीवन के जिस यथार्थ को सामने रखा वो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उनका साहित्यिक योगदान मात्र हिन्दी भाषा के आरंभिक संस्कार का एक अंग नहीं बल्कि भारतीय चेतना और भारतीय समाज की समझ का भी एक प्राथमिक अंग है।”
आयुक्त श्री संजय लवानिया ने रामधारी सिंह दिनकर के साहित्यिक योगदान को याद करते हुए कहा कि, “कुरुक्षेत्र से लेकर ‘हुंकार’ तक, और हुंकार से लेकर ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ तक – दिनकर का काव्य राष्ट्रीय चेतना का महाकाव्य है। उनके साहित्य में व्याप्त सामाजिक, राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक मूल्य सदैव विकासशील भारत की चेतना को प्रेरणा देंगे।”

इस कार्यक्रम में अपर आयुक्त (राजभाषा) श्री दीन दयाल मंगल, संयुक्त आयुक्त श्री पारस मणि त्रिपाठी, सहायक आयुक्त (राजभाषा) श्री सुविंदर कुमार सहित कार्यालय के अन्य सभी पदाधिकारी उपस्थित रहे।
प्रेमचंद का जन्म 1880 में लम्ही (बनारस, उत्तर प्रदेश) में हुआ। हिन्दी साहित्य के सौन्दर्यशास्त्र में यथार्थ की प्रतिष्ठा प्रेमचंद की साहित्यिक चेतना की एक मुख्य देन रही। पूस की रात, कफ़न, पंच परमेश्वर, मंत्र, सद्गति, ईदगाह आदि उनकी कहानियाँ एवं गोदान, कर्मभूमि, निर्मला आदि उपन्यास आज भी पाठकों द्वारा खूब पढ़े जाते हैं।
प्रेमचंद ने साहित्यिक प्रगतिशीलता को गद्य में स्थापित करते हुए अंतिम जन, दलित, किसान, महिला, वृद्ध समाज के संघर्षों को अपने साहित्य में संपूर्ण गहनता के साथ उकेरा।
1908 में सिमरिया, बिहार में जन्मे रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी काव्य के सशक्त हस्ताक्षर रहे। कुरुक्षेत्र, हुंकार, परशुराम की प्रतीक्षा जैसी रचनाओं में व्याप्त राष्ट्रीय चेतना आज भी भारतीय सांस्कृतिक चेतना को पोषण देती है। उन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। कर्ण के जीवन संघर्ष पर आधारित उनकी रचना ‘रश्मिरथी’ ने लोकप्रियता के ऐतिहासिक आयामों को छुआ।
सीजीएसटी ग़ाज़ियाबाद राजभाषा विकास के कर्तव्य की दिशा में निरंतर नवाचार पर बल देता रहा है। पिछले वर्ष भी आयुक्तालय में प्रेमचंद की कहानी के आधार पर रचनात्मक लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया। विगत वर्षों में राजभाषा पर प्रशिक्षण हेतु कार्यशालाओं का भी नियमित आयोजन किया जाता रहा है। पिछली कार्यशाला में कार्यालय में (कृत्रिम बौद्धिकता) आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के प्रयोग के माध्यम से हिन्दी अनुवाद में गुणात्मक सुधार की दिशा में भी प्रयास किए गये।











